मनुष्य तथा जीवन के सभी अन्य स्वरूपों की तरह पृथ्वी भी एक विशाल जीवन रूप है जिसे जीवित रहने के लिये एक स्तर की निरंतरता की आवश्यकता है.
विश्व का सामान्य तापमान पृथ्वी को एक अनूकूल वातावरण देता है जिससे पानी तरल रूप में रहता है. कार्बन डाइ ऑक्साइड पृथ्वी से निकलने वाली इंफ्रा रेड किरणों का कुछ भाग जमा करके उसे दुबारा पृथ्वी की ओर भेज देती है जिससे ग्रीन हाऊस प्रभाव पैदा होता है. कार्बन डाइ ऑक्साइड का वातावरण तथा महासागरों के बीच आदान-प्रदान होता है और महासागरों में यह भारी मात्रा में संचित हो जाती है.
महासागरों में पाए जाने वाले नमक की मात्रा तथा जलस्तर बेहद असामान्य मौसम के बावजूद भी हज़ारों लाखों सालों से काफी स्थिर रहे हैं.
वातावरण में पाई जाने वाली ऑक्सीजन की मात्रा भी लाखों सालों से लगभग एक सी ही रही है.
पृथ्वी हमें जीवन देती है, हमारा पोषण करती है पर ऐसा वह कब तक भली प्रकार कर सकेगी यह चिंता का विषय बनता जा रहा है.
तीव्रता से असामान्य होता जा रहे मौसम चक्र ने पिछले कई वर्षों से वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित किया है तथा विश्व भर के संचार माध्यम व लोगों के बीच च्रर्चा का केंद्र बना रहा है.साल 2012 में यह मुद्दा और भी तेज़ी से उछला.जापान के क्यूशु नामक क्षेत्र में भारी वर्षा जारी रही. दूसरी ओर अमेरिका में जून 2012 में बड़े स्तर पर वनों में लगी आग, भीषण गरमी तथा विध्वंसकारी तूफानों जैसे प्राकृतिक संकट एक के बाद एक आते रहे जिनमें लोगों की मृत्यु भी हुई. 9 जुलाई को यह खबर आई कि पिछ्ले साल का अमेरिका का औसत तापमान रिकार्ड स्तर से ऊँचा रहा तथा यह 1895 से अभी तक का रिकार्डों में अंकित सबसे अधिक तापमान था.
परंतु केवल तापमान के बढ़ने पर ध्यान केन्द्रित करने से हाल में हुए जलवायु परिवर्तनों के विषय में अधिक जाना नहीं जा सकता.
जलवायु परिवर्तन सम्बंधी सरकारी पैनल द्वारा 1 नवम्बर को प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य में असामान्य मौसम चक्र में अच्छी खासी वृद्धि होगी. इन वैज्ञानिकों का मानना है कि गरम हवाओं तथा बाढ़ जैसी असामान्य मौसम चक्र से जुड़ी घटनाएँ और भी अधिक भयंकर रूप ले लेंगी. इन घटनाओं के प्रकोप का गंभीर असर शहरों के फैलाव व लगातार होती जनसंख्या वृद्धि से और भी बढ़ जाएगा.
चाहे हम इन घटनाओं को सामान्य सामयिक उतार-चढ़ाव के रूप में देखें या पृथ्वी में होने वाले महत्वपूर्ण परिवर्तनों के सूचक के रूप में, दोनों ही स्थितियों में स्पष्ट है कि पृथ्वी वर्तमान में बड़े स्तर के असंतुलन का सामना कर रही है.
प्राकृतिक आपदाओं के अतिरिक्त मानव पृथ्वी पर लगातार अत्याचार करता जा रहा है. औद्योगिक महाक्रांति से शुरु हुए जीवाश्म ईंधन के प्रयोग से कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा में तेज़ी से वृद्धि हुई है और कुछ लोगों का मानना है की पृथ्वी का तापमान बढ़ने के पीछे यही कारण है. बार बार किये जाने वाले परमाणु परिक्षणों से वातावरण ही नहीं पृथ्वी भी प्रदूषित हो गई है. संसाधनों के बिना सोचे विचारे किये जाने वाले उपयोग के कारण जंगल तेज़ी से घटते जा रहे हैं तथा पूरी पृथ्वी बुरी तरह से प्रभावित हो रही है. इन सभी गल्तियोंसे पृथ्वी का संतुलन बिगड़ता है.
इस के अतिरिक्त वातावरण,भूमि तथा महासागर चर्नोबिल, थ्रि माइल आईलैंड तथा फुकुशिमा जैसे परमाणु हादसों से प्रदूषित होते जा रहे हैं. जापान सरकार की घोषणा के अनुसार फुकुशिमा परमाणु सन्यंत्र के परमाणु रिएक्टर नम्बर 1,2,3 अंततः 16 दिसम्बर 2011 को ठन्डे पड़ कर बंद हो चुके हैं. परंतु इससे परमाणु प्रदूषण के मुद्दों का समाधान नहीं हुआ है.
अगर भविष्य में रेडियोधर्मी रिसाव नहीं भी होता है तो अब तक हो चुका रिसाव अर्ध-स्थाई रूप में रेडियोधर्मिता करता रहेगा. हालांकि फुकुशिमा में किये गए कुछ प्रदूषण रोधक प्रयासों को सफल माना जा सकता है,परन्तु यह सिर्फ परिभाषा के शब्दों तक सीमित है क्योंकि रेडियोधर्मी रिसाव सिर्फ एक स्थान से दूसरे स्थान चला गया है. दूसरे शब्दों में कहें तो रेडियोधर्मी तत्व लुप्त नहीं हुए हैं बल्कि किसी दूसरे स्थान पर जा कर जमा हो गए हैं. जब तक रेडियोधर्मी तत्वों के घातक प्रभाव को पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जाता जिससे कि वो रेडियोधर्मी किरणें ना छोड़ें, तब तक असली समाधान तक नहीं पहुंचा जा सकता.
उच्च चेतना के प्राणी जिनके एक प्रतिनिधि हैं लामा सिंग, उन्होंने हाल ही में पृथ्वी में हो रहे बदलावों के विषय में कथन दिया.यह कथन उन्होंने 4 दशक से उनके आत्म-विस्मृति के मार्ग बने हुए श्री अल माईनर के माध्यम से दिया.
कोई भी एक दूसरे से अलग नहीं है, हालांकि दूरियों के कारण ऐसा प्रतीत हो सकता है. एक मन का दूसरे मन से, एक ह्रदय का दूसरे ह्रदय से सम्बंध अनन्तकाल से चला आ रहा है तथा इसका खंडन करने से विघ्न पैदा होता है. इस तरह का विघ्न पृथ्वी पर ना जाने कितने सालों से फैल कर जमा हो गया है तथा इसने पृथ्वी को बुरी तरह से प्रभावित कर दिया है.
यह धारणा की पृथ्वी और उस पर रहने वाले मनुष्य अलग-अलग हैं, एक भ्रम है. हम सभी की ही तरह पृथ्वी भी एक जीवन रूप है. धरती में उगने वाला पौधा, आकाश में उड़ने वाला पक्षी, समुद्र में रहने वाली मछ्ली –हम सब और पृथ्वी सभी एक हैं. अगर हम यह मानते हैं कि हम अलग-अलग हैं तो हम ना तो खुद को देख सकेंगे ना पृथ्वी को.
हम धरती को दूर से देख कर उसकी सुंदरता और चमत्कारी अनन्यता को निहारते हैं,परंतु हम जो खुद पृथ्वी के बाहुपाश में हैं,क्या हम इस सम्बंध को और एक दूसरे को सम्मान दे पाते हैं?पृथ्वी प्रतिहिंसा, विद्वेश, बिखराव, आदि को महसूस करती है. इस तरह की समस्त ऊर्जा का मिलाप काफी हद तक पृथ्वी की बेचैनी के पीछे हैं.
अभी जब हम यह बात कर रहे हैं तब भी एक चुम्बकीय गतिविधि जारी है.
जलवायु क्षेत्रों में और अधिक हरकत सी हो रही है, जोकि हम आने वाले दिनों में देख सकेंगे. और बहुत सी ऐसी चीज़ें जिनके सदा अस्तित्व में रहने को बहुत से लोगों ने स्वीकृत समझ लिया है, वो शायद आने वाले दिनों में लुप्त हो चुकी होंगी.
हम सब एक हैं- हमारा सुंदर ग्रह हमारा हिस्सा है और हम भी उसका एक हिस्सा हैं.
अभी ही वो समय है कि हम इस तथ्य को सम्मान दें कि हमारी और पृथ्वी की चेतना जुड़ी हुई है.
जाने माने स्विस मनोचिकित्सक कार्ल जंग के अनुसार, अवचेतना में पूरे जीवन काल के दौरान हुए अनुभवों का व्यक्तिगत अवचेतन तथा उससे गहरे रूप से फैली हुई सम्मिलित अवचेतना शामिल होते हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो हम सभी जुड़े हुए हैं, हम सभी अवचेतन स्तर पर एक हैं. यदि यह मान के चला जाए तो अपने अवचेतन को जानने से बहुत सी व्यक्तिगत तथा विश्व स्तरीय समस्यायें यदि पूरी तरह से ठीक ना भी हों तो सम्भाली तो जा ही सकती हैं. यहीं पर हो ओपोनोपोनो(Ho`Oponopono)की उपयोगिता दिखाई पड़ती है.
मेरा हो ओपोनोपोनो (Ho`Oponopono) से प्रथम परिचय श्री युकिओ फुनाई की कृतिदो सत्य (Two Truths) के माध्यम से हुआ था. जब मैंने यह किताब पढ़ी थी, तब मुझे हो ओपोनोपोनो के महत्व तथा उसकी असीमित सम्भावनाओं का पूरी तरह से बोध नहीं था. नवम्बर 2011 में जब एक दोस्त ने फिर से मेरा ध्यान इस ओर आकर्षित किया, तब मुझे लगा की मुझे इस विषय में और रुचि लेनी चाहिये. तब मैंने एक और किताब खरीदी जिसका नाम थाSITHहो ओपोनोपोनो: दिव्यात्माओं का पीड़ा से मुक्त हो कर मन की शांति पाने का मार्ग(SITHHo`Oponopono: The Way of the Divine Giving Up Suffering for Peace of Mind). यह किताब श्री मासाफुमी सकुराबा द्वारा लिखित है तथा यह उनके शोधकर्ता इहालियाकाला ह्यू लेन (Ihaleakala Hew Len) से किये गए साक्षात्कार पर आधारित है. इहालियाकाला ह्यू लेन एक लम्बे समय से SITH (Self Identity Through Ho`Oponopono) अर्थात हो ओपोनोपोनो द्वारा आत्म-साक्षात्कार के प्रसार में लीन हैं.
संक्षेप में कहें तो हो ओपोनोपोनो समय की कसौटी पर खरा उतरा समस्या समाधान का तरीका है जोकि विश्व में तेज़ी से फैल रहा है. हवाई देश में उपजा हो ओपोनोपोनो का एक अर्थ सौहार्द की पुनर्स्थापना भी है.
श्री सकुराबा की किताब पढ़ते हुए मुझमें अचानक से प्रेरणा का संचार हुआ कि यदि हम यह स्वीकार कर लें कि हमारी तथा पृथ्वी की चेतना एक है और हम एक ही हैं और अगर फिर हम खुद पर हो ओपोनोपोनो का प्रयोग करें तो उसका प्रभाव पूरी पृथ्वी पर होगा.
हो ओपोनोपोनो एक सरल सी चार चरणों की प्रक्रिया है जिसे बहुत आसानी से कर के देखा जा सकता है. हमें सिर्फ चार पंक्तियाँ जोकि हमारी मंशा को दर्शाती हैं, उन्हें जितनी बार हो सके बोलना या मन में उच्चारित करना है. यह पंक्तियाँ हैं:धन्यवाद, मैं क्षमाप्रार्थी हूँ, मुझे क्षमा कर दीजिए, मुझे आपसे से प्रेम है. इस प्रक्रिया से अवचेतना में अंकित ऐसी बातें कम ही नहीं होती बल्कि मिट भी जाती हैं जो बाद में समास्याओं का रूप ले सकती थीं. विश्व भर में लोग इस से बहुत लाभांवित हुए हैं.
पृथ्वी माँ पर इसे प्रयोग करने के लिये हम पृथ्वी तथा उसके उपकारों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं तथा हमारे एक होने की अवचेतना के आधार पर यह स्वीकार करते हैं कि विश्व में जो कुछ भी हो रहा हम उसके ज़िम्मेदार हैं तथा अपनी गल्तियों के लिये क्षमा माँगते हुए माफी देने की प्रार्थना करते हैं. यह प्रार्थना करने जैसा ही है.
हो ओपोनोपोनोसमय रहते पृथ्वी में लम्बे समय तक बने रहने वाली पुनर्स्थापना लाने का वह तरीका है जिसकी हमें बेहद आवश्यकता है. यदि बहुत सारे लोग पृथ्वी का संतुलन वापस लाने की एक सी मंशा से साथ आयें तो पृथ्वी अवश्य हमारा संदेश सुनेगी और समझेगी.असंतुलन की जगह सौहार्द ले लेगा और पृथ्वी में आने वाले वह बदलाव जिनके विषय में की गई भविष्यवाणियों के बारे में थोड़ा बहुत हम सभी सुन चुके हैं, रोके ना भी जा सकें तो कम तो अवश्य करें जा सकेंगें.
हो ओपोनोपोनोका पालन मन में या बोल कर कर सकते हैं. मैं निम्नलिखित तरीके से इसका पालन करता हूँ:
धन्यवाद, महान पृथ्वी माँ.मैं क्षमाप्रार्थी हूँ. मुझे क्षमा कर दीजिए. मुझे आपसे से प्रेम है.
मैं सभी से आग्रह करता हूँ कि वो हम जैसे पहले ही साथ आ चुके लोगों का इस समान उद्देश्य में साथ दें. यह फुकुशिमा को पवित्र और पुनर्जीवित करके भविष्य में होने वाली तबाही को रोकने का सबसे छोटा रास्ता है.
(अधिक जानकारी पाने के लिये हो ओपोनोपोनो,अमेरिका मुख्यालय की अधिकृत वेबसाइट
http://www.self-i-dentity-through-hooponopono.org/).
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